सोमवार, 30 नवंबर 2009

"जिन्दगी जीना सीखों.........."

"जिन्दगी जीना सीखों.........."
खुशियाँ बांटना सीखों
गम को भुलाना सीखों
अगर जिन्दगी जीनी है...
तो जिन्दगी को जीना सीखों


समय को समझना सीखों
इंसान को परखना सीखों
अगर खुद को जीना है....
तो जिन्दगी को जीना सीखों


आजादी को छीनना सीखों
गुलामी को तोड़ना सीखों
अगर आजादी जीनी है यारो.....
तो जिन्दगी को जीना सीखों



संसार को देखना सीखों
खुद को दिखाना सीखों
अगर मर कर भी जीना है.....
तो जिन्दगी को जीना सीखों

खुदा को जानना सीखों
उसके जहाँ को समझना सीखों
उसकी इबादत करनी है अगर दोस्तों.....
तो जिन्दगी को जीना सीखों


पलों कों महसूस करना सीखों
इस सफ़र के मज़े लेना सीखों
बहुत निशां है तुम्हारे आगे
उन्हें देख जीना सीखों....
तो जिन्दगी को जीना सीखों


अब मत रुको,आगे बढ़ो
अपनी मर्जी के मालिक बनो
सब कुछ भूल जाओ....

और....
"जिन्दगी जीना सीखों"



सोमवार, 23 नवंबर 2009

come on.........

क्या यार मुझे बताया तो करो की मै जो लिख रहा हु वो सही है भी या नही
कैसा लिख रहा हु....
कृपया कर अब बताइयेगा....

शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

ये कविता मेने उस दोस्त के लिए लिखी हे जो हमे गली के कुत्ते से भी गया गुजरा समझते है.......
और हां अपनी राय जरुर देना.....

नींद में...............

नींद में...............


एक दिन देखा,देखता रहा.....
एक दिन मिला,मिलता रहा .....

एक दिन सोचा,सोचता रहा.....

एक दिन पूछा,पूछता रहा.....
एक दिन कहा,कहता रहा.....

दिन पै दिन.....
,....... निकलते गये,
फिर!....
फिर अंत में वो मुड़ी
और......
और उसने कहा....

....................."सुबह हो गई"........................


तब नींद से जागा.....


और खूब हँसा
खूब हँसा.......

बुधवार, 11 नवंबर 2009

केसे हो............................

दोस्तों...........
क्या हाल है आप के
ठीक तो हो .................

शनिवार, 7 नवंबर 2009

मोहब्बत की कश्ती

मोहब्बत की कश्ती


जब सवार हुए हम कागज की कश्ती में .......
एक समंदर में इस कदर डूबते चले गए......
न जाने कहा इस जहाँ से,कही बहुत दूर निकल गए........


अजीब सी दुनिया थी,खुशनुमा माहोल था
अजीब से लोग थे,जिनका अलग अंदाज था


हर तरफ ख़ुशी और सिर्फ ख़ुशी थी
हर लब्ज पर मुस्कराहट और हँसी थी


गरीबी-अमीरी न जाने कही खो सी गई थी
जात-पात भी कही नजर ना आ रही रही थी


चारों तरफ हर्ष और उल्लास था
जो मैरे लिए एक अजीब सा अहसास था

प्यार की मूरत को लोंग पुँज रहे थे
"समाज" का पुतला,मस्तक टे़क रहा था


अचानक तेज की बारिश हुई.....
मगर मैरी कश्ती ना जाने क्यों डूबी नहीं.....


आखे खोली गो़र देखा,तो पाया......
मै कागज की नहीं.....
बल्कि..............


मोहब्बत की कश्ती में खडा था.......
......और

......................प्यार की बारिश में भीग रहा था......

बुधवार, 4 नवंबर 2009

विश्वासघात

विश्वासघात
विश्वास के रेशमी धागे को तोड़ दिया था,
जब किया था "विश्वासघात"
लहूलुहान था विश्वास उनका,
जब किया था "विश्वासघात"
ना चाहते हुए,अनजाने ही सही.....,
जब किया था "विश्वासघात"
अपने-उनके रिश्ते के बीच चढा दी थी दिवार,
जब किया था "विश्वासघात"
फिर भी....,फिर भी ना थे
वो.........
खफा, ना नाराज,
जब किया था "विश्वासघात"
पर! पर!......
मै,
मेरी आत्मा थी नतमस्तक.......
क्योकि....
किया था मैने.....
"विश्वासघात"

मैने देखा था वो..........

मैने देखा था वो..........

दो हाथ, दो पैर, दो आखों वाला
मैने देखा था वो..........

तुम्हारे-हमारे जैसा दिखने वाला
मैने देखा था वो..........

हम जैसा पर कुछ अलग सा
मैने देखा था वो..........

उसके हाथो हो रहा था खून "इंसानियत" का
मैने देखा था वो..........

खून को देख हँसने वाला
मैने देखा था वो..........

लोगो को विलपते देख नाचने वाला
मैने देखा था वो..........

हमें हमारे आखिरी मुकाम तक पहुचाने वाला
मैने देखा था वो..........

खुनी दरिन्द्रो के साथ ख़ुशी बाटने वाला
मैने देखा था वो..........

साँसे रूकती जा रही थी पर....
पर....
मेरी नजरे उससे ना हटी,
क्योकि....
क्योकि.... अपनी आखरी "सासों" तक

"मैने देखा था वो.........."

मंगलवार, 3 नवंबर 2009