शनिवार, 7 नवंबर 2009

मोहब्बत की कश्ती

मोहब्बत की कश्ती


जब सवार हुए हम कागज की कश्ती में .......
एक समंदर में इस कदर डूबते चले गए......
न जाने कहा इस जहाँ से,कही बहुत दूर निकल गए........


अजीब सी दुनिया थी,खुशनुमा माहोल था
अजीब से लोग थे,जिनका अलग अंदाज था


हर तरफ ख़ुशी और सिर्फ ख़ुशी थी
हर लब्ज पर मुस्कराहट और हँसी थी


गरीबी-अमीरी न जाने कही खो सी गई थी
जात-पात भी कही नजर ना आ रही रही थी


चारों तरफ हर्ष और उल्लास था
जो मैरे लिए एक अजीब सा अहसास था

प्यार की मूरत को लोंग पुँज रहे थे
"समाज" का पुतला,मस्तक टे़क रहा था


अचानक तेज की बारिश हुई.....
मगर मैरी कश्ती ना जाने क्यों डूबी नहीं.....


आखे खोली गो़र देखा,तो पाया......
मै कागज की नहीं.....
बल्कि..............


मोहब्बत की कश्ती में खडा था.......
......और

......................प्यार की बारिश में भीग रहा था......

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